दया धर्म ना छोड़िये, जब तक घट में प्रान
दया धर्म ना छोड़िये, जब तक घट में प्रान॥
महाराज जी ने कई बार हमें बताया है की मनुष्य योनि में जन्म लेना बड़े भाग्य की बात होती है। संभवतः इसलिए क्योंकि केवल मनुष्य योनि से ही मुक्ति या उससे भी उत्तम मोक्ष की प्राप्ति संभव है। इसलिए हमें प्रयत्न करना चाहिए की ये हमारा मनुष्य का तन (शरीर/ जीवन) व्यर्थ न जाये।
श्री वजहनजी का कितना सरल परन्तु अत्यंत महत्वपूर्ण पद यहाँ पर महाराज जी भक्तों को समझा रहे हैं की मनुष्य की योनि में जन्म पाकर, हमें किसी भी बात का अहंकार करने से बचना चाहिए फिर चाहे वो अपनी धन -संपत्ति का हो, पद का हो, जाति हो, रूप का हो, अपने आप को ज्ञानी मानने का हो या बड़ा भक्त मानने का हो इत्यादि।
क्योंकि अहंकार के वशीभूत होकर हम (चाहे कुछ पल के लिए ही सही) दूसरों को दुःख पहुंचा देते हैं परन्तु इसका फल कभी -कभी हम आजीवन सहते हैं या अगले जन्म में तक लेकर जाते हैं - अगर हमारी वजह से दूसरे बहुत अधिक या कई बार आहत होते हैं।
इसलिए हमारा हित इसी में है की अहंकार के बजाय हम विनम्र रहें, अपने आप को याद दिलाते रहें जो हम को सुख -समृद्धि, पद, रूप, ज्ञान इत्यादि प्राप्त है वो जब तक है, जितना है -उस परम -आत्मा की कृपा से है।
महाराज जी के आशीर्वाद से है। फलस्वरूप इसके लिए हमें उनका कृतज्ञ रहना है।
महाराज जी आगे समझाते हैं कि जब तक हमारे शरीर में प्राण है, हम जीवित हैं तब तक दूसरों के लिए, ज़रूरतमंदों के लिए दया की भावना रखना हमारा परम धर्म है फिर चाहे वो किसी भी धर्म या जाति का हो। बिना अपने किसी स्वार्थ के, पर अपने सामर्थ अनुसार उनकी मदद करनी है।
यही उस परम आत्मा के लिए और महाराज जी लिए हमारी सबसे बड़ी और सच्ची पूजा है।