ईश्वर की भक्ति का जात-पात से कोई मतलब नहीं
महाराज जी भक्तों को उपदेश दे रहे हैं- चमार,
पासी, मेहतर, भगवान के अनन्य भक्त हो गये आज हम ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य
कुल में जन्में, बढ़िया खाना, बढ़िया पहनना- और जाना कुछ नहीं अहंकार- रावण,
कपट -मारीच, यह घुसे हैं ………… कुछ करने नहीं देते मान-अपमान जीव को खाये
लेते हैं।
मेरी जाति दूसरे की जाति से श्रेष्ठ है। महाराज
जी भक्तों को यहाँ पर समझा रहे हैं कि ये एक भावना हममें से बहुत से
भक्तों को कभी भी ईश्वर के समीप नहीं जाने देती, महाराज जी के प्रति भाव
सच्चे होने नहीं देती फिर हम चाहे जितना भजन कर लें, कथा-कीर्तन, सत्संग
कर लें। जात -पात के हिसाब से दूसरों के साथ भेदभाव करना और अपने आप को महाराज जी का भक्त मानना- इसमें विरोधाभास है।
ज़रूरी
नहीं है जो पहले से होता आया वो आज के युग में भी ठीक ही हो महाराज जी के
भक्तों को जात -पात से ऊपर उठना होगा उनकी कृपा का पात्र बनने के लिए। महाराज जी ने जात- पात का सदैव विरोध किया है। उनके लिए सब भक्त बराबर हैं। और ईश्वर की भक्ति का जात-पात से तो कोई मतलब ही नहीं है।
महाराज जी सबका भला करें।