जो कुछ नहीं माँगता, भगवान उसको स्वयं दे देते हैं
बहुत बड़ी दौलत के मालिक होने के बावजूद भी यदि मन में कुछ पाने की चाह बाकी है तो समझ लेना वो अभी दरिद्र ही है और कुछ पास में नहीं फिर भी जो अपनी मस्ती में झूम रहा है। उससे बढ़कर भी कोई दूसरा करोड़ पति नहीं हो सकता है।
सुदामा को गले लगाने के लिए आतुर
श्री द्वारिकाधीश इसलिए भागकर नहीं गए कि सुदामा के पास कुछ नहीं है अपितु इसलिए गए कि सुदामा के मन में कुछ भी पाने की इच्छा अब शेष नहीं रह गयी थी। जो कुछ नहीं माँगता उसको भगवान स्वयं को दे देते हैं, द्वारिकापुरी में सुदामा राजसिंहासन पर विराजमान हैं और कृष्ण समेत समस्त पटरानियाँ चरणों में बैठकर उनकी चरण सेवा कर रही हैं।
सुदामा अपने प्रभाव के कारण नहीं पूजे जा रहे हैं अपितु अपने स्वभाव और कुछ भी न चाहने के भाव के कारण पूजे जा रहे हैं।
सुदामा की कुछ भी न पाने की इच्छा ने उन्हें द्वारिकापुरी का राजसिंहासन प्रदान कर दिया मानो कि भगवान ये कहना चाह रहे हों कि जिसकी अब और कोई इच्छा बाकी नहीं रही वो मेरे ही समान मेरे बराबर में बैठने का अधिकारी बन जाता है। मनुष्य की कामना शून्यता ही उसे अधिक मूल्यवान, अनमोल और उस प्रभु का प्रिय बना देती है।