ईश्वर तो सर्वव्यापी है वो सब जगह है

 
महाराज जी भक्तों को उपदेश दे रहे हैं कि एक ईश्वर प्रेमी के लिये सभी स्थल मन्दिर और मस्जिदें हैं वह जहाँ रहता है ईश्वर के साथ रहता हममें से बहुत से लोग ईश्वर की खोज में विभिन्न जगह जाते हैं मंदिर में, मस्जिद में, तीर्थ स्थानों में, पर्वतों पर इत्यादि यदि हमारी आस्था है की ईश्वर इन स्थानों पर हैं तो ये संभव है ईश्वर तो वहीँ है जहां भक्त के भाव है ईश्वर तो सर्वव्यापी है वो सब जगह है, सबमें है।
 
हमारे ऋद्धि-मुनियों ने जैसे बताया है, हमारे शास्त्र में जैसे लिखा है और महाराज जी ने भी कहा है कि उस परम- आत्मा का वास सर्वप्रथम हमारे अंदर है उसका अंश अर्थात हमारी आत्मा तो हमारे शरीर के अंदर ही है ना !! इस उपदेश के सन्दर्भ में संभवतः महाराज जी यहाँ पर हमें समझा रहे हैं की जो ईश्वर में अटल विश्वास रखता है, वो ये मान के चलता है कि वो ब्रम्ह ही है जो इस पुरे ब्रम्हांड को चलाता है, इसलिए इस ब्रम्हांड के समस्त चराचर भी उसी की रचना हैं, स्वयं उस भक्त के जीवन में जो कुछ भी हो रहा है वो उस सर्वशक्तिशाली परम आत्मा की मर्ज़ी से हो रहा है अर्थात ऐसे ईश्वर प्रेमी के हर हाल में, हर पल में भगवान उसके साथ हैं, फिर चाहे उसका अच्छा समय चल रहा हो या संघर्ष वाला ये कहना जितना सरल है, यथार्थ में कभी -कभी या बहुत से लोगों के लिए मानना इतना आसान नहीं होता लेकिन जो ईश्वर प्रेमी हैं, या ईश्वर में ऐसा विश्वास रखते हैं , रखने का प्रयत्न करते हैं, विशेषकर महाराज जी में सच्चे भाव रखने वाले उनके लिए ये संभव भी है।
 
ऐसे भक्त जब कठिनाइयों का सामना कर रहे होते हैं, बुरे समय में होते हैं उन्हें महाराज जी की कृपा से इस बात का कहीं ना कहीं एहसास होता हैं कि जो भी उनके साथ हो रहा है, वो उनके ही द्वारा पूर्व में किये गए बुरे कर्मो का फल है जो परमात्मा की कर्म और कर्मफल की उत्तम और त्रुटिरहित व्यवस्था के अंतर्गत है तदनुसार ऐसे कठिन समय में भी वे प्रायः संतुष्ट रहते है। कभी -कभी माया के वश में विचलित होना फिर भी संभव है परन्तु ऐसे में वे अपनेआप को याद दिलाते रहते हैं, कभी -कभी एक ही दिन में कई बार, की उनके ऊपर महाराज जी आशीर्वाद है, परमात्मा की कृपा है इसलिए इस लीला में भी उनका कुछ ना कुछ कल्याण ही निहित है और इस समय का बीतना भी निश्चित है। महाराज जी सबका भला करें।

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