पर्व है पुरुषार्थ का दीप के दिव्यार्थ का
दीपावली अंतर्मन के दीप जलाने का पर्व है। काम-क्रोध-लोभ और मोह जैसी घनघोर अमावस में ज्ञान रुपी दीप प्रज्वलित कर भीतर के तम का नाश करना ही इस पर्व का मुख्य उद्देश्य है।
जहाँ प्रेम रूप दीए जले हों श्री राम उसी हृदय रुपी अयोध्या में विराजते हैं। या तो हृदय में प्रेम की ज्योत जलने पर श्री राम आयेंगे अथवा तो श्री राम के विराजमान होने पर हृदय में स्वतः ही प्रेम का प्रकाश विखरने लगेगा।
अतः इस दीपावली पर मिठाई ही नहीं प्रेम भी बाँटे। पटाखे ही नहीं दुर्गुणों को भी जलाए। घर को ही नहीं ह्रदय को भी सजाए। फिर जीवन को राममय होते देर ना लगेगी। और जहाँ राम (धर्म) हैं वहाँ लक्ष्मी जी तो आती ही हैं।
पर्व है पुरुषार्थ का,
दीप के दिव्यार्थ का,
देहरी पर दीप एक जलता रहे,
अंधकार से युद्ध यह चलता रहे,
हारेगी हर बार अंधियारे की घोर-कालिमा,
जीतेगी जगमग उजियारे की स्वर्ण-लालिमा,
दीप ही ज्योति का प्रथम तीर्थ है,
कायम रहे इसका अर्थ, वरना व्यर्थ है,
आशीषों की मधुर छांव इसे दे दीजिए,
प्रार्थना-शुभकामना हमारी ले लीजिए!!
झिलमिल रोशनी में निवेदित ,
अविरल शुभकामना,
आस्था के आलोक में,
आदरयुक्त मंगल भावना!!
आप सबके स्वस्थ, समृद्ध एवं आनंदमय जीवन की शुभकामनाओं सहित पुनः दीपोत्सव की बधाई।