लोभ के कारण ही संसार में बड़े- बड़े लोगों का पतन हुआ है
इस संसार में अज्ञानी- ज्ञानी, तपस्वी, शूरवीर, कवि, विद्वान और गुणवान ज्यादातर लोभ के कारण उपहास के पात्र बने हुए हैं लोभ के कारण ही नाना प्रकार के पाप जीव के द्वारा होते हैं लोभ एक ऐसी प्रवृत्ति जिसमें इंसान को वस्तु तो मिल जाती है पर संतुष्टि नहीं होती। धन तो मिल जाता है पर निर्धनता बनी रहती है प्राप्त के प्रति अहोभाव नहीं उठता अप्राप्त के प्रति चाह बनी रहती है सब कुछ होने के बाद भी चिंता बनी रहती है।
इस लोभ के कारण ही संसार में बड़े- बड़े लोगों का पतन हुआ है लोभ के कारण ही यह आवागमन संसार में होता रहता है।
कामस्यान्तं हि क्षुत्तृड्भ्यां क्रोधस्यैतत्फलोदयात् ।
जनो याति न लोभस्य जित्वाभुक्त्वा दिशो भुवः।।
भावार्थ- लोभ मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है क्रोध अपना काम पूरा करके शान्त हो
जाता है, परन्तु यदि मनुष्य पृथ्वी की समस्त दिशाओं को भी जीत ले और भोग
ले, तब भी लोभ का अन्त नहीं होता है, एक बात याद रखें संसार के समस्त भोग भी आपको मिल जाएँ तो भी आपकी संतुष्टि नहीं होगी लोभ तृप्त होने ही नहीं देगा। सत्संग
रुपी चिकित्सालय में, गुरु रुपी छाँव में या भगवद चिन्तन से उत्पन्न विवेक
के द्वारा ही इस लोभ का नाश संभव है नहीं तो लोभ के कारण बहुत जन्म बिगड़े
हैं, एक और सही।
लोभात्क्रोधः प्रभवति लोभात्कामः प्रजायते।
लोभान्मोहश्च नाशश्च लोभः पापस्य कारणम।
लोभ से क्रोध उत्पन्न होता है, लोभ से विषय भोग की इच्छा होती है और लोभ से मोह और नाश होता है, इसलिए लोभ ही पाप की जड़ है।