वचन वो है जो सुनते ही अमृत के समान मीठा लगे
लोक तथा वेद में तीन प्रकार के वचन उपलब्ध होते है। शास्त्रज्ञ पुरुष अपनी निर्मल ज्ञानदृष्टि से उन सब प्रकार के वचनों को जानता है। एक
तो वह वचन है जो तत्काल सुनने में बड़ा सुन्दर (प्रिय) लगता है परन्तु
पीछे वह असत्य और अहितकारक सिद्ध होता है। ऐसा वचन बुद्धिमान शत्रु ही कहता
है उससे कभी हित नहीं होता।
दूसरा वह है जो आरम्भ
में अच्छा नहीं लगता उसे सुनकर अप्रसन्नता ही होती है परन्तु परिणाम में
हितकारी होता है। इस तरह का वचन कहकर दयालु धर्म शील बान्धवजन ही कर्त्तव्य
का बोध कराता है। तीसरी श्रेणी का वचन वह है जो सुनते
ही अमृत के सम्मान मीठा लगता है और सब काल में सुख देने वाला होता है। सत्य
ही उसका सार होता है इसलिए वह हितकारक हुआ करता है ऐसा वचन सबसे श्रेष्ठ
और सबके लिए अभीष्ट है।