जिसकी श्रद्धा सारे जगत को वन्दन करे वही है श्रद्धालु


प्रभु तो सरल ह्रदय पर रीझते हैं और उसी को अपनी लीला की अनुभूति कराते हैं जिसकी श्रद्धा सारे जगत को वन्दन करे वही श्रद्धालु है जो मंदिर में ही नहीं मंदिर के बाहर भी सबको प्रभु रूप माने वही श्रद्धालु है।

श्रद्धा का वास्तविक अर्थ है जड़- चेतन सब में शिवत्व का दर्शन प्रत्येक व्यक्ति की मौलिकता का सम्मान जिसने सच में आध्यात्मिकता को जान लिया होगा वह कभी किसी का अपमान नहीं कर सकता।

भक्त का सर केवल मंदिर में नहीं सर्वत्र ही झुका मिलेगा वह सुबह- शाम ही नहीं प्रत्येक पल ही श्याम - मय रहेगा। सरल विनम्र युक्त व्यवहार करने वाले को तो संसार के लोग भी क्षमा कर देते हैं तो प्रभु क्यों न करेंगे।

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